भारतीय नारी

‘ नारी शक्ति को दो सदा सम्मान, बढ़ाओ निरन्तर उसका मान।’
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। के साथ महिलाओं के सम्मान में एक स्वरचित कविता पटल पर प्रेषित है।


चाहे आंधी आए या तूफान,
नहीं कभी किसी से हारी हूं।
नाज है मुझे अपने आप पर,
कि मैं एक भारतीय नारी हूं।


बंधन,आदेश, बंदिशों को सह,
फिर भी पूरी तरह तुम्हारी ही हूं।
सहन शक्ति की क्षमता के कारण,
बन गई आज मैं सबकी दुलारी हूं।


हां, दैवीय शक्ति से हो परिपूर्ण।
मैं एक अद्भुत भारतीय नारी हूं।
प्रथा, परम्परा, रीति रिवाजों की,
अब तक खेल चुकी सब पारी हूं।


अपमान को करते हुए दरकिनार,
मुस्कराहट से पड़ती सब पर भारी हूं ।
बाबुल का घर छोड़, अपनों से,
नाता जोड़ बनी सबकी प्यारी हूं।


आंसुओ के अंबार के बीच भी,
वात्सलय भाव से बच्चों की दुलारी हूं।
बेटी, बहू, मां,बहन, पत्नी के रूप में,
फर्ज निभाने वाली भारतीय नारी हूं।


हर रंग – रुप में ढल जीवन की,
खुशियों को तलाशते ना मैं हारी हूं।
बाबुल के घर से ससुराल तक,
फैलाती रहती मैं ही तो हरियाली हूं।


अपने हौसलों से करूं बुलंद,
अपना नाम दुनिया में ऐसी नारी हूं।
जंग जीतने का जज्बा है मन में,
आस्था,श्रद्धा,विश्वास से भरी नारी हूं।


आज नारी दिवस मनाने को तैयार,
प्रगति पथ पर बढ़ती एक समृद्ध नारी हूं।
नर से हर क्षेत्र में आगे रहने वाली,
मैं एक कुशल भारतीय नारी हूं।
नाज है मुझे अपने आप पर,
कि मैं एक भारतीय नारी हूं

डॉ. रेखा मंडलोई ‘ गंगा ‘ इंदौर

Kavya ganga

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