सारी दुनिया की गंदगी उठा कर बाहर फेंकना है,
समाज सुधारक बन मुझे अपनी रोटियां सेंकना है ।
इस दुनिया की अच्छाइयों की ओर हमें देखना है,
जन्नत सी खुशियां है द्वार खड़ी उसे समेटना है।
सामाजिक न्याय की भावना लोगों में सहेजना है,
छुआछूत, जाति-पाति का भेद दूर ढकेलना है।
समाज सुधारक का काम ही मुश्किलों को झेलना है,
फिर भी अपनी ताकत का जलवा हमें बिखेरना है।
दीवार जो बन गई है विषमताओं की उसे भेदना है,
आंधी तूफान सी हर मुश्किल को दूर कर देखना है।
सारी दुनिया की गंदगी उठा बाहर फेंकना है,
समाज सुधारक बन मुझे अपनी रोटियां सेंकना है।
डॉ. रेखा मंडलोई “गंगा”
kavya ganga