
अहंकार छोड़े
अभी नही तो कभी नही
उद्वेलित मन लिए खड़े सब भर अश्रु की अविरल धार,
वैश्विक महामारी के ताण्डव ने मचा दिया था हा हा कार।
देख प्रलयंकारी विस्फोट को आया सबको यही विचार,
एक सदी के अंतराल से कुदरत कर दिया पुनः प्रहार।
करुण क्रंदन और आर्तनाद संग मानव था बेबस लाचार,
शिथिल मन से सोच में बैठे कैसे बचाए अपना परिवार।
बच्चों के खेलने के लिए भी ना खुलते थे घर के द्वार,
बाल मन ना रुकता घर में लगाता बाहर जाने की गुहार।
मां ने जिद यह पकड़ी थी गुहार मानने को ना थी तैयार ,
ना मालूम कब छू ले मौत आता बस बार बार यही विचार।
गर थोड़ी सर्दी संग किसी को आ जाए थोड़ा बुखार,
कांप जाता तत्क्षण व्यक्ति कोरोना का ही आता विचार।
न अस्पताल है खाली न ऑक्सीजन का है भंडार,
आज हुए हैं सारे मानव हताश, निराश,बेबस,लाचार।
मिट्टी के पुतले के अंहकार पर जैसे हुआ है कोई प्रहार,
न काम आया धन दौलत न जो कमाई थी उसने अपार।
यमराज के आगे हो चुके थे सब आज कितने लाचार,
जीवन है क्षणभंगुर ना कर तू ज्यादा सोच विचार।
लोभ लालच से दूर केवल भगवत भक्ति को बना आधार,
अभी भी सोच ले मानव छोड़ दे तू अब अपना अहंकार।
डॉ. रेखा मंडलोई ‘ गंगा ‘ इन्दौर
kavya ganga