
नीम बरगद हो या पीपल,
देते शीतल ठंडी छाव सदा।
गांव का शांत वातावरण ही,
हमको लगता हरदम प्यारा।
चिंता फिकर नहीं है हमको,
मिल जुल बरसाते प्यार सदा।
बचपन की ये प्यारी दोस्ती,
बनी रहे आबाद है भाव यही।
सुबह सवेरे ठंडी छाया में आ,
मिलता गजब का सकुन हमें,
अल्हड़ बचपन की ये तस्वीर,
लौटा लाती बचपन की ओर हमें।
खेल कूद का प्यारा बचपन देख,
बच्चा बन खेले ये कहता मन।
उछल कूद और मौज मस्ती भर,
जीवन जीने को लालायित है मन।
इन बच्चों की खुशियों को देख,
न नजर लगे कहता है मेरा मन।
डर का नामो निशान नहीं इनमे,
निश्छल भाव से भरे इनके मन।
जीवन जीने का बिंदास भाव है,
संदेश यही पा जिए जीवन सभी।
भेदभाव ना हो हम सब में आओ,
मिल प्रतिज्ञा करे आज हम सभी।
बचपन की यादों में ले जाती है,
इतनी प्यारी सी यह तसवीर हमें।
डॉ. रेखा मंडलोई ‘ गंगा’
डॉ. रेखा मंडलोई ‘ गंगा’
kavya ganga
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
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Dil Se Dher Sara Dhanywad
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