हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई के साथ एक स्वरचित कविता प्रेषित है:-
हिन्दी बन जन मानस की अति प्रिय भाषा।
तार दिलों के जोड़ने की जगाती आशा।
सभ्यता- संस्कृति की जो बताती परिभाषा।
निराली लिपि भी इसकी बनाती सरल भाषा।
जैसे बोले वैसे ही लिखती जाए यह भाषा।
प्राचीन भाषा पाली का विकसित रूप ये भाषा।
महाकवि केशव,भूषण, बिहारी के मन की भाषा।
पंत, निराला, प्रसाद के महाकाव्य की भाषा।
बड़े – बड़े धर्म ग्रंथ को अपने में समाए यह भाषा।
सद साहित्य का भर भंडार ज्ञान बढ़ाती भाषा।
सुरीले साज को संजों महफ़िल सजाती भाषा।
विश्व बंधुत्व के भाव को सबमें जगाने की आशा।
पूरी हो भारत को विश्व विख्यात करने की अभिलाषा।
हिन्दी छोड़ मोह अंग्रेजी का पाल मत बढ़ाओ निराशा।
शान इसकी है निराली यही जगाओ मन में आशा।
मंदारिन को पीछे धकेल आगे बढ़ती जाए भाषा।
पहला स्थान हासिल करने का सम्मान पाए भाषा।
कर विश्व प्रतिनिधित्व हमारा मान बढ़ाएं भाषा।
सौहार्द,स्नेह, सम्मान और प्यार बढ़ाए यह भाषा।
संबंधों में मधुरता बढ़ा दूर करती दिलों की निराशा।
सरलता,सहजता, संग समरसता लिए यह भाषा।
निरन्तर हम सब का मान बढ़ाती जाती हमारी भाषा।
विश्व पटल पर अपना अधिकार जमा कर यह भाषा
हिन्दी दिवस आज मना रही यह प्यारी भाषा।
डॉ. रेखा मंडलोई ‘ गंगा ‘ इन्दौर