बात पते की

लघुकथा

Adult granddaughter assisting her grandmother sitting in wheelchair
अगर किसी को हमारी मदद की आवश्यकता है तो सच्चे मन से उसकी मदद करना चाहिए


आज घर में बहुत काम है, दोपहर तक मेहमान आने वाले हैं, सारी तैयारी अभी बची हैं, काम के लिए रानी भी अभी तक नहीं आई है…. ऐसे ही अनेक प्रश्नों के आने जाने का सिलसिला रोहिणी के दिमाग में चल रहा था। उसे देखकर हर कोई ये बात समझ सकता था कि उसे आज प्रत्येक काम को पूरा करने की बहुत जल्दी है, और हो भी क्यों नहीं आज उसकी लाडली बेटी पिंकी को देखने वाले मेहमान जो आने वाले थे। उसने फोन के नम्बर रानी को लगाए, एक बार, दोबार, कई बार परन्तु उधर से कोई जवाब नहीं। थक हार कर वह काम समेटने में जुट गई। लगभग एक घंटे बाद जब रानी घर पहुंची तो आव देखा न ताव वह उस पर बरस पड़ी। रानी पहले तो सब सुनती रही, फिर हिम्मत करके धीरे से बोली, मैडम मैं शर्मा अंकल के घर जब काम करने गई तो देखा वो दरवाजे खोलने आते समय चक्कर खाकर गिर गए हैं। मैंने तुरन्त पड़ोस के अंकल को बुलाया और दोनों मिलकर उन्हें अस्पताल ले गए। जब तक उनका बेटा ऑफिस से नहीं आया तब तक उनको अकेले छोड़ कर आने की हिम्मत नहीं हुई।इसी हड़बड़ाहट में आपका फोन भी मैं नहीं उठा पाई। उसकी बाते सुनकर मेरा गुस्सा ठंडा हो गया, सोचा बात तो ये पते की कर रही है कि अगर किसी को हमारी मदद की आवश्यकता है तो सच्चे मन से उसकी मदद करना चाहिए, दिखावे के लिए नहीं।


डॉ. रेखा मंडलोई “गंगा”

डॉ. रेखा मंडलोई “गंगा”
kavyganga

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