
रानी का मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था। सोच रही थी कि कब उसकी नानी आएंगी और कब वह उसके साथ खेलेंगी। विगत दिनों नानी के साथ बिताए पल उसे याद आ रहे थे और वह रोमांचित हो रही थी। नानी के विषय में सोचते सोचते उसे कब नींद लग गई पता ही नहीं चला। नींद की अवस्था में ही वह स्वपन लोक में विचरण करने लगी कि उसकी नानी उससे मिलने के लिए एक उड़न खटोले में बैठ कर आ रही हैं। यह क्या नानी आप केवल मेरे लिए ही खिलौने और चॉकलेट लाई हो, छोटू के लिए नहीं, उसने बड़ी मासूमियत से नानी से पूछा। नानी थोड़ा गुस्सा करते हुए बोली मैं किसी छोटू को नहीं जानती। मेरी तो प्यारी रानी बिटिया तुम ही हो, इसलिए मैं ये सब तुम्हारे लिए ही लाई हूं।आप जो भी चीजे लाई हो उसमें से आधा हिस्सा मैं छोटू को देने वाली हूं। नहीं यह नहीं हो सकता नानी की आवाज सख्त हो चली थी। रानी नींद में ही रोते रोते बड़बड़ाने लगी, आप मेरी प्यारी नानी नहीं हो सकती हो मैं तुमसे बात नहीं करना चाहती। नींद में रानी को रोते देख उसकी मम्मी ने उसे जगाया और प्यार से पूछा क्या हुआ? रानी बोली नानी… । उसकी मम्मी ने कहा अरे तुम्हारे पापा उन्हें लेने गए हैं वो लोग आते ही होंगे, तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। रानी को यह बात समझते देर न लगी कि वह अभी तक जो नानी के बारे में सोच रही थी वह हकीकत नहीं एक सपना ही था। वास्तव में उसकी नानी ऐसा कदापि नहीं करेंगी।यह उसका विश्वास था, इसे उसकी मम्मी और अधिक मजबूत कर दिया था।
डॉ. रेखा मंडलोई “गंगा”