‘मां की महिमा’

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई के साथ अपनी मां के प्रति अपार स्नेह के साथ स्वरचित कविता प्रेषित है:-

मां करुणा का सागर अपने में कर समाहित,
हम पर सदा वात्सल्य का अमृत रस बरसाती है ।
मां सुखों का कर त्याग, बच्चों के लिए रात-रात भर जाग,
बच्चों को मधुर लोरी संग प्यार भरी थपकियां देती हैं।
मां अपार शांति का देकर अहसास हमें जन्नत सी खुशियों का द्वार दिखाती हैं,
मां निश्छल भाव से स्नेहमयी ममता लुटा बच्चों के लिए नई दुनिया बनाती हैं।
मां निंदिया के मोह का कर त्याग बच्चों के लिए सुखद सपने सजाती हैं,
मां अपनी गोदी को ही बच्चों के लिए पलना बनाती है।
मां स्नेह,ममता, करुणा की वात्सल्य मयी मूर्ति हैं,
सुखों की घनी छाया बनकर चैन की बंशी हरदम सुनाती हैं।
मां अपने बच्चों के लिए अपार पीड़ा सहती हैं,
उसके आंचल से दुग्ध की धारा सतत बहती है।
मां अपने सपनों का कर त्याग बच्चों को दुनिया में जीना सिखाती हैं,
खुद भूख, प्यास को सह बच्चों के लिए जान लुटाती हैं।
मां की दुआओं में जन्नत सी अपार खुशियों का खजाना है,
धन्य हो जाती है बच्चों को हर हाल में खुश रखना जानती हैं।
मां परिवार की सम्पूर्ण जिम्मेदारियों को सहर्ष उठाती हैं,
बच्चों के जीवन में अनगिनत खुशियों को बरसाना जानती है।
मां के हैं अहसान अनेकों, मां कर्म पथ पर सतत चलना सिखाती हैं,
मां के लिए दुनिया नई बना खुशियों की बौछारें लुटानी है।

डॉ. रेखा मंडलोई ‘ गंगा ‘ इन्दौर

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