
कोरोना जैसी बीमारी को नजदीक से देख एक विचार मेरे भीतर उठ आया है,
ये कोरोना नहीं शायद मेरा कोई आशिक है जो मुझसे मिलने का मन बना कर आया है।
अपना पूरा नियंत्रण मुझ पर करके देखो तो कितना इठला रहा है,
मुझे अपने साथ एक कमरे में कैद करके कैसे जीत की खुशियां मना रहा है ।
पूरे शरीर को दे असहनीय दर्द अपने प्यार का इजहार कर रहा है,
न ढंग से खाने पीने देता न सोने, केवल अपनी ही सेवा करवा रहा है।
एक विशिष्ट मेहमान की तरह अपनी आवभगत में सबको लगा दिया है,
फलों के ज्यूस के साथ -साथ पौष्टिक आहार की मांग भी बड़ा रहा है।
अपने पास न किसी को फड़कने देता, अपने आप को शहंशाह मान बैठा है,
दिन रात इसी के ख्यालों में खोई रहूं मैं बस यही सब चाहत लिए तो आया है।
मेरे अपनों से मुझे पूरी तरह दूर कर खुद बहुत खुश हो रहा है,
मुझे पूरी तरह से अपने आगोश में ले आशिकी के नए रंग दिखा रहा है।
न कभी किया मैंने इससे प्यार फिर भी एक तरफा प्यार जताएं जा रहा है,
अपनी जकड़न से मुझे एक पल को भी दूर नहीं होने दे रहा है।
कैसा है ये कोरोना आशिक एक तरफा प्यार में पागल हुए जा रहा है,
मुझे मंजूर नहीं एक तरफा प्यार मैंने इससे मुक्ति पाने का मन बना लिया है।
इसकी जकड़न से दूर होने का हौंसला अपने आप में ही बड़ा लिया है,
फल और दवाइयों के साथ लेखनी को अपनी ताकत बना लिया है।
सात दिन में इसकी आशिकी को अपने से दूर कर बाहर का रास्ता दिखाने का भाव जगा लिया है,
जन जन इसकी गिरफ्त से दूर रहे प्रभु के सामने ऐसी प्रार्थना को कर लिया है।
मास्क के साथ सावधानियां पूर्ववत बढ़ाने का संदेश सबको देने का मजबूत फैसला कर लिया है, कोरोना आशिकी अब जीवन भर आस पास न आने पाए ऐसा अपने आप को मजबूत बना लिया है ।
डॉ. रेखा मंडलोई ‘ गंगा ‘ इन्दौर
वाह वाह , क्या बात है। कोरोना को सिर्फ कवियत्री ही अपना एक तरफा आशिक मान सकती हैं।
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