
सावन के बादल से भी ज्यादा कीमती होते हैं ये बादल आषाढ़ के । खेत खलिहानों में खुशियां छा जाती हैं और मन बाग बाग हो जाते हैं किसान के।
चारों तरफ फैली गर्मी और उमस से मिलती राहत और खिल जाते हैं चेहरे किसान के।
आसमान भी बड़ा सुहावना लगे जब बादल बरसे आषाढ़ में दिन लगे बहार के।
मेध देख आषाढ़ के नाचे मन मयूर खुशी से और बरसे पानी आसमान से।
खेत खलिहानों में व्यस्त हो जाते किसान जैसे उनके लिए आए हो दिन बहार के।
चिंता से पा जाते निजात और गीत गुनगुनाते हैं देख बादल आषाढ़ के ।
मस्ती संग झूमे नाचे गाए और आते रहे किसान के जीवन में दिन बहार के।
यही पावन उद्देश्य लेकर हमने भी लिख दी चार पंक्तियां कि कैसे हो दिन आषाढ़ के।
एकटक आसमान को निहारने की घड़ियां हो तमाम और व्यस्त हो जाए हर पल भी किसान के।
आओ ऐसे आषाढ़ के बादल का स्वागत करे हम सब जिससे दिल बाग बाग हो जाए किसान के।
आषाढ़ के बादल संग समेटे अनंत खुशियां जिससे महके खुशियां जीवन में किसान के।
डॉ. रेखा मंडलोई ‘ गंगा’