
जीवन चलने का नाम है, और अगर अबाध गति से गुजरे तो बात ही ओर है। दिन का सुहाना सफर प्रतिदिन की तरह शनिवार को भी प्रारंभ हुआ। प्रतिदिन प्रातः कालीन बेला में चुस्ती, फुर्ती के साथ काम काज प्रारंभ हो जाता है, परन्तु आज कुछ काम में मन नहीं लग रहा था। समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। नियत समय पर स्कूल से घर भी आ गई परन्तु बड़ी थकान महसूस होने के कारण सो गई। शाम को जब सो कर उठी तो बदन गर्म था, फीवर देखा तो 99था। रात को खाने के बाद बुखार 101हो गया। डोलो गोली खाकर सो गई। सुबह तक भी बुखार नहीं उतरा। सोचा क्रोसिन एडवांस खाने से उतर जाएगा। दोपहर में गोली खाकर सो गई। शाम तक एकाध गोली और मिल गई जो एंटीबायोटिक थी। रविवार को कोई खास डॉक्टर नहीं मिलेंगे सोचकर दोनों गोली खाकर सो गई। सुबह देखा तो बुखार 102 है, अब तुरन्त डॉक्टर का पता लगा कर पहुंच गए बॉम्बे हॉस्पिटल। वहां डॉक्टर ने देखने के बाद बहुत सारी जांचें लिख दी। उसमें से एक थी कोरोना की, जो कि पॉजिटिव आ गई और यही से शुरू हुआ मेरे सात दिन का सफर। अब तो जैसे मेरा कमरा और उसकी चार दिवारी तक मेरी दुनिया कैद हो गई। कभी बिस्तर से बातें करना, कभी दीवारों से तो कभी अपने आप से। सुबह से शाम तक कुछ समझ नहीं आ रहा था। नाश्ता मिल जाए तो दोपहर के खाने का इन्तजार और दोपहर के बाद शाम को फल का तो रात को फिर भोजन का इन्तजार। सात दिन जैसे सात जन्मों की तरह निकल रहे थे। हर समय दरवाजे पर निगाहें टिकी रहती थी। गोली दवाई खाओ और सो जाओ, बहुत बॉरिंग लाइफ लग रही थी। फिर लिखने पढ़ने का विचार मन में आया। थोड़ा सा लिखने पढ़ने के बाद ही बहुत तेज सिर दर्द और बदन दर्द होने लगता। न पढ़ने में मन लगता न कुछ लिखने में। फिर भी मन को कड़ा करके कुछ लिखने बैठ ही जाती। शायद दो दिन में एक रचना बनने लगी। थोड़ा मन को व्यस्त किया। अभी भी पता नहीं कब तक इस कमरे में रहना है। आज फिर टेस्ट हुआ है, शाम तक रिपोर्ट आएंगी। अगर अपने विचारों के अनुकूल फिर पॉजिटिव आ गई तो क्या होगा, मन बैचेन है। इस तरह के सात दिनों की सजा भगवान मेरे किसी दुश्मन को भी न दे।कमरे में कहाँ क्या रखा है समझो इन सात दिनों में अच्छे से देख पाई थी । विचारों में हजारों काम आ जाते पर करने की हिम्मत बिल्कुल नहीं है । पता नहीं कब तक ऐसी असहाय की तरह मैं अपने आप को महसूस करूंगी । काम करने की इच्छा है परंतु शक्ति नदारद है , भगवान से प्रार्थना है मुझमें पहले की तरह शक्ति का संचार कर ऊर्जावान बना दे ।
डॉ. रेखा मण्डलोई ‘गंगा’