
मीनू सुबह से ही चहक रही थी। उसकी गर्मी की छुट्टियां लग चुकी थी। वह बैठ कर दादी से बतिया रही थी। सुनो दादी हम भारत भ्रमण पर जा रहे हैं, तुम भी चलोगी। नहीं बिटिया आज के भारत को देखकर मुझे ज्यादा खुशी नहीं होती, इस कारण मैंने मना कर दिया है दादी ने अपनी नाराजगी व्यक्त की। आज का भारत मतलब मीनू ने उत्सुकता दिखाते हुए पुछा। हां बेटा आज जहां देखो वहां मिलावट, लूट,भ्रष्टाचार और अनैतिकता का व्यापार हो रहा है। हमारे समय में वातावरण में शुद्धता थी आर्गेनिक खेती के कारण सब स्वस्थ और तंदुरुस्त होते थे। लोगों के विचारों में अपनेपन का भाव समाहित होता था, सब एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होते थे। आज मुझे यह सब दिखाई नहीं देता है, मैं पुनः वैसे ही भारत की तस्वीर देखना चाहती हूं। नन्हीं मीनू ने दादी के सामने प्रण लिया कि वह हर संभव प्रयास करेंगी दादी के सपनों के भारत को मूर्त रुप देने के लिए। दूसरे दिन जब वह पापा के साथ भारत भ्रमण के लिए निकली तो अपने पापा से आग्रह किया कि वे केवल आर्गेनिक भोजन ही करेंगे और प्रदूषण रहित वातावरण के निर्माण में हर सम्भव प्रयास करेंगे। मीनू की बात सुनकर उसके पापा को आश्चर्य हुआ कि मेरी बेटी ऐसी बातें क्यों कर रही है, तब बिटिया ने दादी मां की सारी बातें उन्हें बताई। ओह तो मम्मी इस कारण हमारे साथ नहीं आई मीनू के पापा मन ही मन बुदबुदाए। उन्होंने अपनी बिटिया को वचन दिया कि दादी के सपनों के भारत के निर्माण के लिए मैं भी हर सम्भव प्रयास करूंगा। पापा की बात सुनकर मीनू के चेहरे पर एक मुस्कान दौड़ गई और वह पापा के गले लग गई।
डॉ. रेखा मंडलोई “गंगा”