बाल निर्माण

बाल मन

भावी भविष्य के कर्णधारों का करना है अगर बेहतर निर्माण।
प्रेम,सेवा,दया, त्याग आदि मूल्यों का करना होगा संचरण।
परदुख कतराता, और ईमानदारी जैसे बीजों का होने दो अंकुरण।
सुख -दुख के भाव समझे और सहभागिता से भर जाए उनके मन।


बाल मन में क्रियात्मकता के भाव का भी होने दो प्रस्फुटन।
व्यवहारिक पक्ष की प्राथमिकता के अनुकूल ही सीखना होगा आचरण।
परिस्थितियों के अनुरूप अपने आप को ढालने की प्रेरणा का भी करो निर्माण।
तभी तो बालकों का जीवन संवरेगा और होगा सुसंस्कार से पूर्ण आचरण।


सभी को मिलकर करना होगी सार्थक पहल और देना होगा सदाचरण।
तभी होगा भावी भविष्य के कर्णधारों में बेहतर गुणों का बीजारोपण।
आओ मिलकर संवारे बाल मन को और दे उन्हें उल्लसित वातावरण।
जिससे बड़े वे निर्भय होकर और हो ले अपने आप से देश प्रेम का प्रण।

डॉ . रेखा मण्डलोई ‘गंगा’

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