“असली खुशी”

आज रजनी की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसकी इकलौती बेटी चिंकी का आज जन्मदिन था। वह सुबह से ही इस उधेड़ बुन में थी कि वह अपनी बेटी को आज क्या तोहफ़ा देगी? उसने कई बार अपने पति राजीव से इस संबंध में बात की, परन्तु उसे कोई संतोष जनक जवाब नहीं मिल पा रहा था। वह मन ही मन सोच रही थी कि क्या करे क्या न करें? सुबह से राजीव तैयार होकर काम पर चले गए। उनके जाने के बाद रजनी जन्मदिवस की तैयारियों में जुट गई थी लेकिन रह-रहकर वह यही सोच रही थी कि चिंकी के लिए उपहार के बारे में राजीव कोई बात किए बिना ही ऑफिस क्यों चले गए ? उसे मन ही मन राजीव पर बहुत गुस्सा भी आ रहा था, परन्तु फिर भी बेटी को ज्यादा से ज्यादा खुश करने के अनुरूप वह तैयारियों में जुटी हुई थी। शाम को चिंकी के कुछ मित्रों के साथ उनके मम्मी पापा आने वाले थे। पूरी तैयारी करने के बाद वह बिटिया को तैयार करते हुए राजीव का इन्तजार कर ही रही थी कि अचानक गाड़ी के रुकने की आवाज आई। रजनी अपने हाव भाव से राजीव पर गुस्सा जता रही थी, परन्तु राजीव के चेहरे पर एक अलग ही प्रकार की मुस्कान थी। रजनी जब राजीव के लिए चाय बनाने गई तब तक राजीव ने बिटिया को अपनी गोद में बिठाया और उसके पैरों में मधुर झंकार भरी पायल पहनाने लगे। रजनी जब चाय लेकर आई और बेटी के पैरों में पायल देखकर खुशी से झूम उठी। चिंकी की खुशी का भी कोई ठिकाना नहीं रहा। तीनों के चेहरे पर छाई खुशी ही तो थी, असली खुशी।


डॉ. रेखा मंडलोई ‘गंगा’ इन्दौर

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