
दिल की कलियां खिला लोगों को हंसाने का हुनर था तुम्हारे पास,
अब कैसे आएगी लोगों के चेहरे पर मुस्कान कैसे होगी पूरी आस।
भगवान तूने भी तो सुननी थी हम सब के दिलों की अरदास,
शायद तुझे भी थी कोई हास्य महफिल की दिल से गहरी आस।
इसी कारण भाई राजू को तूने बुला लिया इतनी जल्दी अपने पास,
अब कैसे सज पाएगा राजू का हास्य दरबार जिसमें था कोई खजाना खास।
विनम्र श्रद्धांजलि देते हैं हम और करते हैं उनके लिए यह अरदास,
आपके श्री चरणों में देना जगह और रखना अपने दिल के पास।
शत शत नमन है ऐसे खुश मिजाज राजू श्रीवास्तव को आज,
आपका नाम सदैव जीवंत बना रहे यही है बस मन में आस।
डॉ. रेखा मंडलोई “गंगा ” इन्दौर