
प्रथम स्वरूप में माता तूने सती स्वरूप का त्याग किया,
पर्वत सुता होने के कारण शैल पुत्री का नाम मिला।
बैठी वृषभ राज पर माता भक्तों का उद्धार किया,
माँ महिमा गाकर सबने गरबा नृत्य और भजन किया।
द्वितीय स्वरूप में माता तूने तप,आचारण और ध्यान किया ,
दक्ष प्रजापति के घर जन्मी माँ ब्रह्मचारिणी नाम मिला।
सदाचार-संयम का माँ ने अपने भक्तों को संदेश दिया,
तेरी आराधना से ही माता भक्तों का संकट दूर हुआ।
तृतीय अवतार में सिद्धी से शिव जी के संग ब्याह हुआ,
अर्द्ध चंद्र को सजा मस्तक पर चंद्रघंटा का नाम मिला।
ब्रह्मा,विष्णु और महेश की शक्तियों को संचित किया,
सिंह पर हो सवार माँ तूने अंधकार को दूर किया।
चतुर्थ अवतार में मां तूने कुष्मांडा का स्वरूप धारण किया,
माता की मंद- मंद हंसी ने सृष्टि का निर्माण किया।
अष्ट भुजाओं वाली माँ ने भक्तों का उद्धार किया,
मालपुए का लगा भोग भक्तों ने माँ को प्रसन्न किया।
पंचम स्वरूप में माता तूने कार्तिकेय को गोद लिया , स्कन्द माता बन तूने सुख समृद्धि से पूर्ण किया।
स्नेहमयी मोहक मुस्कान से कारज सबका सिद्ध किया,
छठे अवतार में कात्यायन ऋषि के घर जन्म लिया।
तेरी भक्ति से साधक अलौकिक शक्ति से पूर्ण हुआ,
सातवें अवतार में कालरात्रि रूप में रक्त बीज का नाश किया।
भयंकर स्वरूप को धारण कर माँ तूने दुष्टों का संहार किया,
काली कल्याणी बन माँ तूने भक्तों का बेड़ा पार किया।
सिंह वाहिनी माँ का सबने नतमस्तक हो सम्मान किया,
आठवें अवतार में माँ तूने महागौरी का स्वरूप पाया ।
तप योग पूर्ण काले वर्ण पर शिव दृष्टि का चमत्कार हुआ,
गौरवर्ण शिव कृपा से पाया और महागौरी तुझे नाम मिला ।
नवम अवतार में सिद्धी प्रदायनी बन सिद्धीधात्री का नाम मिला,
शिवजी को कर शक्ति प्रदान मां अर्द्ध नारीश्वर रूप दिया।
भक्तों की मनोकामनाओं को कर पूर्ण अभय वरदान दिया।
नव शक्ति स्वरूपा मां की भक्ति से जीवन हमारा धन्य हुआ।
डॉ. रेखा मण्डलोई ‘गंगा ‘ इंदौर